
रही वहीं भाजपा नेता भी दबी जुबान से अपने ही दिग्गजों पर आरोप लगाने में पीछे नहीं दिख रहे हैं। वहीं जबलपुर से किसी का भी मंत्री न बन पाने के पीछे पार्टी के ही एक दिग्गज को कारण बताते हुए निशाना साधा जा रहा है।
प्रदेश के चार प्रमुख जिलों में एक जबलपुर से प्रदेश के मंत्री मंडल में किसी भी विधायक को शामिल नहीं किया गया है। प्रदेश नेतृत्व इसके लिए केन्द्रीय नेतृत्व की आड़ ले रहा है। कहा जा रहा है कि उपचुनाव को देखते हुए ही ऐसा किया गया है। हालांकि महाकोशल की परसवाड़ा सीट से जीते विधायक रामकिशोर कांवरे को मंत्रीमंडल में लेकर क्षेत्र को साधने की कोशिश की गई है लेकिन इससे जबलपुर जिले की नाराजगी कम नहीं हो सकी। मंत्री पद के लिए पहले पाटन क्षेत्र से निर्वाचित वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई का नाम चल रहा था लेकिन ऐन वक्त पर बदलाव कर सिहोरा विधायक नंदिनी मरावी के नाम की चर्चा सामने आ गई। आखिर में वह नाम भी सूची से बाहर कर दिया गया। जानकार बताते हैं कि जबलपुर के किसी भी विधायक को मंत्रीमंडल में जगह न मिल पाने के पीछे पार्टी के अंदर फैल चुकी गुटबाजी ही प्रमुख कारण रही है। वरिष्ठता के आधार पर पहले से ही विश्नोई के नाम की चर्चा चल रही थी। हालांकि समीकरण न बन पाने के कारण उन्हें बता दियाा गया कि फिलहाल उन्हें मौका नहीं मिल सकता है। इसके बाद केन्ट विधायक तथा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व ईश्वरदास रोहाणी के पुत्र अशोक रोहाणी का नाम सामने आया। मंत्रीमंडल गठन के दो दिन पहले अचानक सिहोरा विधायक नंदिनी मरावी का नाम सूची में शामिल कर बाकी दावेदारों के नाम विलोपित कर दिए गए। सूत्रों के अनुसार मरावी के नाम की सिफारिश सांसद राकेश सिंह ने की थी। गुटबाजी के चलते वे नहीं चाहते थे कि विश्नोई मंत्री बनकर उनके कद को प्रभावित कर सकें। जिले के वरिष्ठ विधायक तथा मंत्री पद के दाबेदार विश्नोई ने शुक्रवार को स्थानीय मीडिया से बात करते हुए साफ कह दिया है कि एक माह में कुछ बड़ा हो सकता है। माना जा रहा है कि इस उपेक्षा के चलते जबलपुर व महाकोशल में भाजपा को कुछ हद तक नुकसान उठाना पड़ सकता है।