इस गांव के लोग एक देश में खाते हैं दूसरे देश में सोते हैं, बेहद अनोखा कारण - Khabri Guru

Breaking

इस गांव के लोग एक देश में खाते हैं दूसरे देश में सोते हैं, बेहद अनोखा कारण



नई दिल्ली। भारत इतनी ज्यादा विविधताओं का देश है कि दुनिया का कोई भी देश शायद ही इतने अलग-अलग रंग अपने आप में समेटे हुए है। इन्हीं में से एक नागालैंड का लोंगवा गांव भी है। यह गांव इतना अनोखा है कि यहां के लोग खाते एक देश में हैं जबकि सोते दूसरे देश में हैं। और इसका कारण अपने आप में बेहद खास है जो काफी आकर्षित करने वाला है। मजेदार बात यह भी है कि यह गांव इतनी खूबसूरत जगह पर बसा है कि लोग यहां घूमने भी जाते हैं।

दरअसल, नागालैंड के मोन जिले में लोंगवा नामक एक गांव स्थित है। इस गांव के बीच से ही भारत-म्यांमार सीमा गुजरती है। इस वजह से लोंगवा गांव के निवासियों को दोहरी नागरिकता का लाभ मिलता है और उन्हें स्वतंत्र रूप से घूमने की आजादी भी मिली हुई है। यहां के लोगों को सीमा पार करने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं होती है। कुछ घरों का बेडरूम भारत में और किचन म्यांमार में मौजूद है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक घने जंगलों के बीच म्यांमार सीमा से सटा हुआ भारत का यह आखिरी गांव है। यहां कोंयाक आदिवासी रहते हैं। इन्हें बेहद खूंखार माना जाता है। अपने कबीले की सत्ता और जमीन पर कब्जे के लिए वो अक्सर पड़ोस के गांवों से लड़ाइयां भी करते थे। बताया जाता है कि लोंगवा गांव मोन शहर से करीब 42 किलोमीटर दूर है।

देखने में काफी खूबसूरत है यह गांव
यूं तो नागालैंड वैसे भी खूबसूरत जगह है लेकिन लोंगवा गांव के प्राकृतिक नजारे और भी आकर्षक हैं। यह पूर्वोत्तर भारत में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है। लोंगवा का शांत वातावरण और यहां की हरी भरी हरियाली लोगों का दिल जीत लेती है। प्रकृति के आकर्षण के अलावा, लोंगवा में नागालैंड साइंस सेंटर, डोयांग नदी, शिलोई झील, हांगकांग मार्केट और कई अन्य पर्यटन स्थल भी मौजूद हैं। नागालैंड राज्य परिवहन निगम की बसों से मोन जिले तक पहुंच सकते हैं और फिर लोंगवा के लिए कार किराए पर मिल जाती है।

गांव के लोगों का मुख्य कार्य
म्यांमार की सीमा से सटे भारत के करीब 27 कोन्याक गांव हैं। लोंगवा गांव के लोग कोन्याक जनजाति के ही हैं, जो हेडहंटर होने के लिए जाने जाते हैं। 1960 के दशक तक गांव में सिर का शिकार एक लोकप्रिय प्रथा रही है। गांव के कई परिवारों के पास पीतल की खोपड़ी का हार है, जिसे वे एक महत्वपूर्ण मान्यता के रूप में मानते हैं। हार को युद्ध में जीत का प्रतीक माना जाता है। यहां अफीम का सेवन भी काफी बड़े पैमाने पर किया जाता है, जिसकी खेती गांव में नहीं की जाती है बल्कि म्यांमार से सीमा पार तस्करी की जाती है।

पेज